सीढ़ी चढ़ने पर घुमावदार
मेरा कमरा है
जो लम्बाई में बड़ा
पर ऊंचाई में छोटा है
लेकिन बावजूद इसके
कि छत नीची है
सीलिंग फैन ही है
जो कि घूमते हुए
लीलने को तैयार
नज़र आता है
अब तो आदत है
कमरे तक चढ़ना,रुकना
सिर को झुकाना
शरीर को फोल्ड करना
फ़िर आहिस्ता -आहिस्ता से
हर कदम पर सतर्कता से
पलंग पर पहुँचना
लेटना,मगर हाथों को
एक सीमा तक उठा
सकपका कर,खींच लेना
फिर किसी तरह
बमुश्किल,बत्ती जलाना
जिससे मुझे रहे याद
पंखा भी चला है
और अगर मैं जगा
तो रौशनी दिखा दे
पंखे का चलते रहना
क्योंकि खतरनाक पंखा
जान लेता था,और ली भी
मेरा दोस्त,6 फुटा
अपने को झुका नहीं पाया
और कट कर मर गया
उसने कहा था,दोस्त
पंखा इतना सिर पर न रखा करो
इसको तुरंत हटा दो
पंखा रखो तो टेबल -फैन
हवा चाहे कम हो थोड़ी
मगर पंख जाली में हों
क्योंकि उससे
सहजता तुम्हें ही होगी
झुकने की आदत भी
समाप्त हो जायेगी
दिल न डरेगा,झिझकेगा
और न हर कदम पर
चौकन्ना हो, माहौल देखेगा
मैंने उसकी बातों को
पहले भी बहुत सुना था
मगर आज उनका अर्थ
आदतन बिछुड़ने पर
समझ में आता है
खैर !अब तो ले आया हूँ
एक अदद टेबल -फैन
जो एक जगह से चुपचाप
ठंडी हवा देता है
और देता है इज़ाजत
कि उठा सकूं मैं हाथ
हिल सकूं,नाच सकूं आज
मगर फिलहाल अभी तक
आदत से सीलिंग फैन की
ऐसा दिल को नहीं
विश्वास हुआ है
कि उसे स्वतंत्रता है
सीमा तक कुछ करने की
इसलिए आज़ादी के
इतने सालों बाद भी
गर्दन झुकी ही है
शरीर मुड़ा ही है
आँखें शंकालु ही हैं
सीलिंग फैन के अहसास से
देखें कब आँखें खुलेंगी
अहसास होगा,दिल को
कि अब स्वतंत्रता है
क्योंकि मेरा कमरा
मेरा नहीं,अपितु है
नक्शा मेरे देश का।
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