हनुमान तुम राम की हो कीर्ति गाथा।
जग में तभी सब टेकते तुम्हें माथा।।
पवनपुत्र तुम बल-बुद्धि,विवेक दाता।
तुमसे जोड़ना चाहे, हर कोई नाता।।
बगैर बताये बल तुम्हें कहाँ याद आता।
हर साँस तो बस राम ही राम आता।।
नम्र,विनीत,सेवा को तत्पर भाव तुम्हारा।
नाम तुम्हारा जग के सारे क्लेश मिटाता।।
श्री राम दर्शन की यदि है कोई चाहत संजोता।
चरण पकड़ ले हनुमान के तो साक्षात् पाता।।
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