जाने कितने वर्षों बाद,लेटा आँखें मीचे।
चाँद, सितारे, बादल के फाहे जाने देखो कितने
रूप बदलते एक-एक पल,में लगते बड़े सलोने।
मंद-मंद शीतल समीर,थपकी दे मुझको वैसे
अपने आँचल ले सुलाती,माँ थी मुझको जैसे।
स्वतः आँख खुल गयी,भोर किरण से पहले
पुलकित मन ने मेरे देखे,सपने नए नवेले।
No comments:
Post a Comment