पंचमुखी हनुमान की जयजयकार
भक्त रक्षा प्रणबद्ध हो,सदा तत्पर खड़े तुम,बन प्रिय इष्टरूप सा।
छिति, जल,पावक, गगन, समीर सारा तेज़ पंचभूत तत्त्व का
साध लिया सार, तभी तो पाते आपमें हम,रूप ईश्वरत्व का।
अद्भुत तेज़- बल सम्पन्न, फैलाते सदा तुम राम यश गाथा
विनत भाव सब एक स्वर, जयकार कर झुकाते तुम्हें माथा।
सिन्दूर, लंगोट और लड्डू तम्हें भाता बड़ा मोतीचूर का
भक्त वही तुम्हें प्यारा,जो पुकारता नाम सदा श्री राम का।
अजर,अमर स्वरुप जो तुम्हारा सदा है करुणानिधान का
दर्शन तुम्हारे वही पाता, हाथ जोड़े जो श्रद्धा विश्वास का।
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