'' जगत जननी माँ भवानी ''
म से ममता ओर माँ बस यूँ ही नहीं है
दरअसल माँ से बड़ा कोई मजहब नहीं है।
माँ को खुद की तकलीफ, ख़ुशी से सरोकार नहीं है
औलाद की परवरिश से बढ़कर उसे कुछ भी नहीं है।
उसके दिल की धड़कन बन दिल उसका धड़कता है
माँ को फिर सपूत, कपूत में ज़रा भी फ़रक नहीं है।
मौत से क्या वो खुदा से भी भिड़ जातीं है
सृजन में क्योंकि वो खुदा से कमतर नहीं है।
पूरी कायनात की ताकत उसमें समायी हुई है
करुणा, प्रेम की उससे बड़ी मिसाल नहीँ है।
माँ भी जननी और खुदा भी जननी है
माँ में तभी तो स्वार्थ की गुन्जाइश नहीं है।
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