ये मेरा जमीर मुझे झूठ कहने नहीँ देता।
अफसोस मगर सच जमाना बोलने नहीं देता।।
कुछ चन्द तालियों, शोहरत और रसूख़ के लिए।
अदब किसी हाल मैं गिरवी रखने नहीं देता।।
वो जो आएं तो रौशन होते हैं सबके चेहरे।
खुदा ऐसा नूर भी सबमें महकने नहीं देता।।
मैं चला था उनके घर तो बहुत सोच के चला था।
सुझायी मगर कुछ भी उनके सामने नहीँ देता।।
बहुत चर्चा सुनी है हमने तुम्हारी हर तरफ़ "उस्ताद"।
हाथ कंगन आरसी भला क्या?जो बूझने नहीं देता।।
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