स्वर्णिम भविष्य ललाट पर,अक्षत-रोली तिलक सजाया।
नमो-नमो हे लाल भारती,यश का तूने क्या शंख बजाया।।
इतिहास रचा,आशाओं का शतदल केसरी "नलिन"खिलाया।
तमसाच्छादित जीवन में रंग भरने का संकल्प दिलाया।।
जाति,संप्रदाय,दलगत स्वार्थ-बंधन से टूटा देखो नाता।
दसों दिशाओं रथ विकास का,सबको दिखता आता।।
जगद्गुरु जो कभी रहा था प्यारा हिदुस्तान हमारा।
सम्मान वही फिर पायेगा,अखंड विश्वास हमारा।।
कोटि-कोटि स्वर दिग्-दिगंत तक गुंजमान कर डाला।
सबका मंगल,सबका कल्याण बस गूँज रहा एक नारा।। .
विवेक रहे जब नीर-छीर का,विश्वनाथ भी मोद लुटाता
नेतृत्व करे जो श्रेष्ठ सभी का, है "नरेंद्र" वो कहलाता।।
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