संत सरल चित जानि सुभाउ सनेहु। बाल विनय सुनी करि कृपा राम चरन रति देहु।।
(बालकाण्ड , दोहा ३ख )
हे सदगुरु मेरे साईंनाथ सरकार।
आप सदा हैं निर्मल, सहृदय उदार।।
मैं बालक हूँ मूढ़मति अन्जान।
कर दो कृपा अब तो दयानिधान।।
अन्यथा मैं रोते ही रह जाउंगा।
राम -चरन की प्रीत कहाँ पाऊँगा।।
ये जीवन भी यूँ ही व्यर्थ चला जायेगा।
तेरे होते भी क्या उद्धार नहीं हो पायेगा।।
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