Friday 23 May 2014

श्री राम चरण का ले आधार 







पूर्णिमा का चाँद खिला आकाश
दे रहा मुझे आमंत्रण चुपचाप
अंतर्मन का विस्तारमयी वितान
संवार लो तुम भी आज
शांत, श्वेत, सहज-सरल ज्योत्सना
उतार लो अपने हृदयाकाश
फिर उतर गहरे दूर तक
कर लो तुम अप्रतिम नौका विहार
देखो बस देखो और महसूस करो
अब कैसा दिखता है यह संसार
हे न अज़ब, अनूठा भय-मुक्त
यह सारा प्रकृति का भ्रू-विलास
आओ इसको नैन अंजुरी से पीकर
ऋषि अगस्त्य से हो जायें गंभीर
साधनारत कंही किसी कोने में अन्जान
एकमात्र श्री राम चरण का ले आधार। 

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