Monday, 11 February 2019

गजल-111समय का क्या है

समय का क्या है वह तो बढ़ेगा ही।
दर्द गर बढ़ गया है तो घटेगा ही।।
चल पड़े जो कभी सफर में किसी।
कभी न कभी लक्ष्य सधेगा ही।।
टकराते रहो निडर चट्टानों से तुम।
किसी तरफ तो किनारा दिखेगा ही।।
सूरज की फितरत भी गजब की है
जो ढले तो हर हाल उगेगा ही।।
क़यामत की अदा है हुजूर के दर की।
जादू तो उसका एक रोज चढ़ेगा ही।।
"उस्ताद" शिद्दत से उसे चाहो।
इम्तिहां सही वो तो मिलेगा ही।।

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