Thursday, 14 February 2019

गजल-114 प्यार तो सारा

वेलेंटाइन डे पर विशेष
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प्यार तो सारा अब बाजार बन गया है। दुकानों का महज कारोबार बन गया है।। बगैर डूबे मन भीग जाता था जिस प्यार में। जिस्मानी रिश्तों का वही अब करार बन गया है।।
एड़ियां घिसनी पड़ती हैं गर्म रेत जाने कितनी।
प्यार तो मगर अब एक इश्तिहार हो गया है।।
कायनात के हर रंग को गौर से जो पढ़ सको।
प्यार का हर शै इजहारे पुकार बन गया है।।डूब गया अब इश्के रूहानी बहता है जिस दर पर।
"उस्ताद"भी खा के ठोकरें होशियार बन गया है।।
@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 13 February 2019

गजल-113 वक्त ठोक बजा

वक्त ठोक बजा सब समझाता है।
हुनर उसे यह बखूबी आता है।।
जब मकसद ही हो किसी का बरगलाना।  समझाने पर भी कहां समझ पाता है।। इल्जाम थोप बेवफाई का उस पर।
खुद वो ही रास्ता भटक जाता है।।
कठगरे में वो खुद को ही खड़ा पाता।
गैर को जब भी आईना दिखाता है।।
गड्डी फेंटो हर बार चाहे जितनी।
जोकर को कहां कोई मिलाता है।।
उस्ताद उसकी नासमझी का आलम देखो।
हर बार सफेद झूठ बेशर्म दोहराता है।।
@नलिन #उस्ताद

गजल-112 सूरज की तरह

सूरज की तरह रहा जलता हर रोज।
मगर रोशनी रहा बांटता हर रोज।।
दे रहा खुद को दिलासा बड़े प्यार से।
हार कर भी हार कहां मानता हर रोज।।
भूल गया गिनती याद ही नहीं अब तो।
जख्म इतने मिले कहां गिनता हर रोज।।बढते कद से उसके है खिसियाया गठबंधन। 
अंगूर खट्टे बार-बार तभी कोसता हर रोज।।
लहरों सा चट्टानों पर पटका सिर बार-बार।
तब कहीं मिल रहा सपाट रास्ता हर रोज।।
काटता शाख पर बैठ जो उसी दरख्त को।
वो ही है उसे बेवजह कोसता हर रोज।।
दिन-रात बढाने में मशरूफ है देश का नाम।
देख छाती पर दुश्मनों के सांप लोटता हर रोज।।
"उस्ताद"पाले हैं इतने संपोले आस्तीन में।
भुगत रहे हैं ये उसकी ही तो खता हम हर रोज।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 11 February 2019

गजल-111समय का क्या है

समय का क्या है वह तो बढ़ेगा ही।
दर्द गर बढ़ गया है तो घटेगा ही।।
चल पड़े जो कभी सफर में किसी।
कभी न कभी लक्ष्य सधेगा ही।।
टकराते रहो निडर चट्टानों से तुम।
किसी तरफ तो किनारा दिखेगा ही।।
सूरज की फितरत भी गजब की है
जो ढले तो हर हाल उगेगा ही।।
क़यामत की अदा है हुजूर के दर की।
जादू तो उसका एक रोज चढ़ेगा ही।।
"उस्ताद" शिद्दत से उसे चाहो।
इम्तिहां सही वो तो मिलेगा ही।।

Saturday, 9 February 2019

110-मदन व्यस्त हो

मदन व्यस्त हो,मदिर नयन सब किलोल कर रहे।
नवल वसंत चहुं ओर देख सखी बौर झर रहे।।

कूक उठी बौराई फुनगी इठलाई है फिरती। वसंत बहार दिशा-दिशा पंचम सुर बिखर रहे।।

डहेलिया,गेंदा,पुष्प गुलाब चटक शुभ रंग खिलते।
मकरंद लूटने मधुकर सारे गली-गली में विचर रहे।।

उपवन-उपवन हरी दूब मखमल बन बिछी हुई।
ओस ठहर बदन पर बाहों में उसको भर रहे।।

स्वप्न अनगिनत इंद्रधनुषी हृदय आज संजो कर।
युगल प्रेमी नीड़ रचने पसार अपने पर रहे।।

गुलाबी नशा,मदहोश करती चल रही बयार। जादू चले अजब-गजब वसंत का जब असर रहे।

दीप बन तारे जगमगाए सुधाकर संग यामिनी में।
मृदुल निर्मल"नलिन"खिलखिलाते
जन-मन सरोवर रहे।।

@नलिन

Thursday, 7 February 2019

गजल-108

गरेबां में अपनी झांक देखो तो सही।
अपने को सही से आंक देखो तो सही।।

पहचान जाओगे फल की तासीर।
चख के एक फांक देखो तो सही।।

श्रद्धा-सबूरी जब भी होगी इबादत तेरी।
बनेगा काम हर बार तेरा देखो तो सही।।

गम और खुशी मिलते हैं सब यहीं।
कर सीना ए चाक  देखो तो सही।।

हो अगर हौसला हिमालय से ऊंचा तेरा।
चांद-तारे छाती पर टांक देखो तो सही।।

हो ना थोड़ा अगर अगर दिल में मैल तेरे। कतरा-कतरा है पाक देखो तो सही।।

कभी बनना जो चाहो "उस्ताद"अगर।
बदन में मल के खाक देखो तो सही।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-107बहुत प्यारे


बहुत प्यारे नजर आते हो तुम।
फूलों के जैसे मुस्कुराते हो तुम।।
वही शोख अदा वही बाॅकपन।
उम्र कहां छोड़ आते हो तुम।।
क्या-क्या कहें, कब तक लिखें।
पोथी पुराण सब भुलाते हो तुम।।
बहुत दूर लगती थी मंजिल कभी।
फासले पल में मिटाते हो तुम।।
जब भी तुम्हें देखा तो ऐसा लगा।
दिल में सभी को बसाते हो तुम।।
काजल लगा बंद कर लूं मैं ऑखें।
पारे से वरना फिसल जाते हो तुम।।
जिस किसी को चाहो घड़ी भर में उसको।
बांवला बना "उस्ताद"नचाते हो तुम।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 6 February 2019

गजल-106 आओ जिन्दगी करके फना

आओ जिंदगी करके फना देखते हैं।
गमों को पी कर हम भी घना देखते हैं।।

वो करें या न करें जरा गौर हम पर।
हम तो बस उनका देखना देखते हैं।।

छोड़ो बेवजह की बहसबाजी देखना।
आओ परिंदों का चहकना देखते हैं।।

बातें तो ये बड़ी-बड़ी करते हैं हुजूर।
चलो जरा इन का अमल करना देखते हैं।।

सांप,नेवलों की लो हो गई जुगलबन्दी शुरू।
जल्द चुनाव बाद सुरों का बहकना देखते हैं।

नाम की चर्चा है माना बहुत नजूमी तेरी।
"उस्ताद" मुस्तकबिल तेरा बांचना देखते हैं।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-104 ये चांद तारों की

ये चांद,तारों की ख्वाहिश से बता क्या हासिल।
आँखिर हाल-ए-दिल उसको अपना जता क्या हासिल।।

वह जो मगरूर है अपनी सत्ता के बल पर। उसे आईना दिखा नैतिकता क्या हासिल।।

रोपें जो पेड़ बबूल तो आम कैसे खाएं।
गए चूक अगर मौका तो पछता क्या हासिल।।

भटकते रहे ता उम्र मृगमारिचिका में।
अब भला दिल दिमाग को उकता क्या हासिल।।

माना तुम दौलत,शोहरत से हो पुख्ता।
पर गरीब,मजबूर को सता क्या हासिल।।

"उस्ताद" तुम भी रहे नादां के नादां ही।
की ना हो चाहे तुमने खता क्या हासिल।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 1 February 2019

गजल-103 नाद में थोड़ा डाल चारा

नाद में थोड़ा डाल चारा दूध सारा उसने निकाल लिया।
गर्दन हिला घंटी बजा गोवंश ने सारा दर्द संभाल लिया।।

गोली खाकर जवान तो छाती पर मर मिटा वतन के लिए।
हुजूर सुप्रीम ने पांव की अजाब* मगर केस टाल लिया।।*शारीरिक पीड़ा

सब अपने में आजकल इस कदर मसरूफ हैं दिखते।
मानो कि जैसे सबने अपने को बुत में ढाल लिया।।

दर्द,तकलीफ से कौन भला वाबस्ता यहां किसी की।
सेल्फी का पोज मगर साथ में बड़ा बेमिसाल लिया।।

आंखों से आंखें चार हुईं तो यह बड़ा कमाल हुआ।
अब "उस्ताद"हमने एक नया दर्द अजब पाल लिया।।

@नलिन #उस्ताद