Sunday, 28 August 2016

श्रीशंकरसर्पयाष्टक {हिंदी पद्य में अनुवादित }महिमामयी शिवपूजन स्तोत्र




कल्याण पत्रिका के शिवोपासनांक में शिव पूजनार्थ 8 पद्य वाले "श्रीशंकरसपर्याष्टकं"का हिंदी गद्य में पद्मश्री डॉ. श्रीकृष्णदत्तजी ने अनुवाद किया है। उसका ही पद्य रूप हिंदी में शिव भक्तों के आनंदार्थ एक विनम्र प्रयास मेरे द्वारा प्रस्तुत है-------
श्रीशंकरसर्पयाष्टक 
जय जय शिवशंकर "तारकेश" प्रभु तुम्हारी सदा-सदा ही जय होवे  
जय जय शिवशंकर "तारकेश" प्रभु तुम्हारी सदा-सदा ही जय होवे। 
भक्तों पर कृपा बरसाते अधरों की हँसी शरदचंद्र कांति को करती फीकी 
आप जगत के कारण स्वरुप हो,श्रीविग्रह छवि तिहारी गौर चंद्र सी नीकी।
नमन शैलजापति "नलिन"माल कंठ शोभा है जिनकी  छायी 
जटाजूट गंग तरंग विराजमान भाल दीप्ति सब जन है भायी।
हार सामान विशाल नाग वक्षःस्थल शोभित छवि न्यारी 
भक्त आनंद अभीष्ट वैभव सदैव ही प्रदानकारी। 
निमग्न स्तुति में ऋषि मुनि देव समस्त भुलोकवासी 
तेरी कृपा से हे आशुतोष हम तो हो सके सुखरासी।
विराजित हिमाच्छादित कैलाश,पारिजात वृक्ष तले ही 
त्रिनेत्रधारी,शूलपाणि,शत्रुमर्दन पिनाकधारी सदा ही।
हे अखिलेश्वर छवि आपकी शुभ चित्त मुनिजन विराजती 
नमन श्रद्धा विश्वास से करता हूँ आपको पाने को सद्गती।
कर्म,प्रारब्ध से मुक्त कल्याणकारी हे सदाशिव शम्भो 
हृदय से मेरे समस्त पाप को मुक्त कर दीजिये प्रभो। 
नित्य मंगल विधान और "नलिन"चरण अनुराग दीजिये 
शीघ्र ही समस्त विपत्तियों को हमारी नष्ट नाथ कीजिये। 
अमरता पाने के इच्छुक देव अमृतपान करना थे चाहते 
छीरसागर मंथन से प्रगट विष हुआ तो भयभीत हो कांपते। 
कृपासागर भोलेनाथ द्रवित तब हलाहल पान कर गए 
ऐसे आदिदेव मृत्युंजय भगवान् के चरण नत हम हुए। 
अज्ञान अन्धकार जगत में विलीनव्याकरण का अलोक किया 
पाणिनि को कृपादृष्टि से प्राचीन सूत्र उद्घाटित आपने किया। 
ऐसे त्रिपुरारी भगवान् शिव को जो ज्ञान के हैं ज्ञानदाता 
नमन करता हूँ मैं प्रभु आप तो हैं परम आंनददाता। 
मस्तक विराजित आपके पवित्र गंगा,चंद्र की निर्मल किरणावली 
पापविमोचक,भक्तकष्टविनाशकारी,सदा जय हो तेरी विरुदावली।      

  



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