Tuesday 21 June 2016

अष्टांग योग





योग है परम आधार जगत का 
योग ही मूल मन्त्र हम जीवों का। 
आसन,धारणा,ध्यान,और नियम का 
प्रत्याहार,प्राणायाम,यम,समाधि का। 
साँस-साँस लयबद्ध क्रमिक गति का 
नामकरण है दिव्य अष्टांग योग का। 
मूलाधार से आज्ञा चक्र तक का 
भेदन होता है जब षट्चक्रों का। 
सहस्त्रार जब-जब जाता प्राण जीव का
दर्शन पाता निर्विकार परम पुरुष का। 
तेजोमय अपना ही रूप निरखता 
एकाकार जो होता साकार ब्रह्म का। 



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