Tuesday, 28 June 2016

जय गजानन रूप साईं



जय गजानन रूप साईं 
तुम आदिदेव,प्रथम पूज्य हो। 
हाथ में मोदक लिए 
भक्त हेतु तत्पर खड़े हो। 
विघ्नहर्ता,जगत्कर्ता
 तुम मंगल स्वरुप हो। 
ऋद्धि-सिद्धि चंवर डुलातीं 
तुम आत्मभू सर्वेश हो। 
विद्या,विनय,शीलदाता 
तुम गुणों की खान हो। 
मन,इंद्री बना मूषक 
बैठ विचरते सर्वत्र हो। 
कान सूपाकार,भक्त पुकार सुन 
हरते त्वरित दुःख,कष्ट हो। 
स्नेह,अंकुश से सदा तुम 
गलत राह पर रोकते हो।
 चार भुजा,चारों दिशा
कर्मरत तुम नित्य हो। 
तिल,दूर्वा,सूक्ष्म भाव अर्पण 
तुम आशुतोष सुपुत्र हो। 



साईं तेरे रूप की कैसे चर्चा करूँ





साईं तेरे रूप की कैसे चर्चा करूँ 
कुछ पल्ले पड़े तो भला मैं कहूं। 
कभी तू इस रूप में तो कभी इस रूप में 
उलझन में हूँ देख सब तेरे रूप में। 
मेरी दृष्टि संकुचित देख पाती नहीं 
वर्ना तू तो उपलब्ध है हर कहीं। 
अब भिखारी हो या अरबपति
साधक कोई या हो फिर व्याभिचारी। 
मैं तो भेद बुद्धि से सभी को तौलता 
पतित,पूज्य खानों में उन्हें हूँ बांटता। 
पर तू तो हर जन को गले लगाता 
सींच प्यार उन्हें अपनाता। 
सब देख के तेरी ऐसी लीला 
सच कहते तुझको "अलबेला"।
  

Sunday, 26 June 2016

नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार





नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार
पर फिर भी व्यथा सताती बारम्बार। 
हाँ ये तो है,नाम तुम्हारा अक्सर 
भाव-विहीन रट्टू तोते सा रहता है। 
क्या इस कारण से साईं मुझको 
यूँ ही ये दर्द बन रहता है ?
वैसे तो ये दर्द रहे भी तो क्या है ?
सुख-दुःख तो बस एक खेल जरा है। 
पर ये अनुभूति जो दुर्लभ है 
दिल में गहरे उतरे तो ही सही मजा है। 
(और) ये सब देने वाला भी तो साईं 
तू ही एक सरकार बड़ा है। 
लेकिन फिर भी मैं वंचित हूँ इससे 
समझ बात न ये आती है। 
तो ऐसे में मेरी विनती ये तुमसे है 
या तो तू दुःख ये सब हर ले। 
या कि फिर मैं इससे उबर सकूँ 
ऐसी शक्ति मुझको दे दे। 

Friday, 24 June 2016

राम-राम-राम बस यही एक काम




राम-राम-राम बस यही एक काम 
बने सदा जीवन का आधार नाम। 
और भला क्या दरकार 
आप से करूँ मैं हे राम। 
जीवन जब तक पल्लवित हो 
आपका नाम,रूप संकल्प हो। 
जब न रहूं इस जगत व्यूह में 
तब मिले विश्राम चरण में। 
यही कामना,निरन्तर हर स्वांस बहे 
जहाँ रहूं,जैसे रहूं आपका दुलार रहे।
 मन सदा उल्लास,आपका विश्वास हो
सबका हो मंगल,सदा यही विचार हो।  

Wednesday, 22 June 2016

साईं आखिर आज तुम आ ही गए घर में




साईं आखिर आज तुम आ ही गए घर में 
अपने मोहक,भव्यतम रूप श्रृंगार में। 
स्वर्ण सिहांसन आसीन,दीप्त काँन्ति  में 
निर्मल कृपा दृष्टि बिखेरते कण-कण में। 
तो सोचो भला क्यों न मैं लगूं इतराने 
तुम जो मिल गए हो परम सौभाग्य से।
त्तुम लोकेश से तो कभी विचरते हो सोमेश से 
यानि कभी ब्रम्हान्ड नायक तो कभी फकीर से। 
श्रद्धा और सबूरी बस मात्र दो मन्त्र तुम्हारे
इन्हें साध ले कोई तो कटें भाव बंधन सारे। 
हर तरफ बिखरे हैं जलवे बस एक तुम्हारे
लिखूं क्या,कहूं क्या-क्या,समझ न आये। 
जो हो,ये तय है जब तुम आये घर-द्वार हमारे 
मिटेंगे रोग व्याधि सब,होंगे साकार स्वप्न सारे। 

यह कविता दो साईं भक्त भाईयों के द्वारा भेट स्वरुप भव्य साईं छवि ,कैलेंडर प्राप्ति पश्चात साईं ने लिखा दी जो अब मढ़वा कर  घर में विरजमान है। 

हर रूप,हर रंग,हर जर्रे में समाया तू है




  1. हर रूप,हर रंग,हर जर्रे में समाया तू है 
  2. तेरी क्या बात करुँ तू तो बड़ा निराला है। 
  3. ओ मेरे साईं सुन ले पुकार मेरी 
  4. कभी तो आ बात करने ढेर सारी। 
  5. व्यथा कथा मैं कहुँगा तुझसे अपनी 
  6. सुनाना तू भी कथा कुछ नयी,पुरानी। 
  7. वर्ना तो ये उमरिया बीत जाएगी सारी 
  8. मेरी हमेशा सी रह जाएगी झोली खाली। 
  9. आज मेरे साईं इतना अहसान अब कर दे 
  10. मेरी चाहत को जरा अमली ज़ामा पहना दे। 
  11. मेरी बेवक़ूफ़ीयों,गलतियों को देखेगा यदि 
  12. तो फिर तो हैं वो तो अनगिनत ढेर सारी। 
  13. तू तो बस मुझ पर कर किंचित कृपा दृष्टि 
  14. बदल जाए जिससे मेरी ये दुनिया,ये सृष्टि। 
  15. अब तो है बस तेरा भरोसा ही बाकी 
  16. तू नहीं तो फिर कौन सुध ले हमारी। 
  17. नाम की चर्चा तुम्हारी बहुत सुनी है भाई 
  18. कर दे पूरी ज़रा मेरी भी फरियाद साईं। 

Tuesday, 21 June 2016

अष्टांग योग





योग है परम आधार जगत का 
योग ही मूल मन्त्र हम जीवों का। 
आसन,धारणा,ध्यान,और नियम का 
प्रत्याहार,प्राणायाम,यम,समाधि का। 
साँस-साँस लयबद्ध क्रमिक गति का 
नामकरण है दिव्य अष्टांग योग का। 
मूलाधार से आज्ञा चक्र तक का 
भेदन होता है जब षट्चक्रों का। 
सहस्त्रार जब-जब जाता प्राण जीव का
दर्शन पाता निर्विकार परम पुरुष का। 
तेजोमय अपना ही रूप निरखता 
एकाकार जो होता साकार ब्रह्म का। 



Sunday, 19 June 2016

साईं -साईं नित रटो











साईं -साईं नित रटो
साँस -साँस हर बार
आज नहीं तो कभी तो होगा
इस जीवन का उद्धार।
संसय-भ्रम पीड़ा का
जब-जब हो संचार
साईं तेरी चरण कृपा का
आता तब-तब ध्यान।
कृपा करो अब त्वरा वेग से
वरना बिगड़ेगा हर काम
समय पर जो मदद मिले ना
वो तो है फिर बेकार। 

Friday, 10 June 2016

श्री राम-राम-राम,बस करूँ यही एक काम





श्री राम-राम-राम,बस करूँ यही एक काम 
  सदा जीवन का आधार बने,यही एक नाम।
  और भला क्या दरकार करूं आपसे राम 
 मैं तो सदा से बड़ा मूढ़ मति रहा हूँ राम। 
  यह जीवन जब तक मेरा  पल्लवित हो 
  आपका नाम,रूप ही मेरा संकल्प हो। 
और जब ना रहूं इस जगत व्यूह में 
  तब मिले विश्राम बस श्री चरण में। 
  यही कामना,निरंतर हर श्वांस बहे 
  जहाँ रहूं,जैसे रहूं आपका दुलार रहे। 
  मन सदा उल्लास में,आपका विश्वास रहे 
 सबका हो मंगल सदा,यही मेरा विचार रहे।