Friday, 8 July 2016

आतंक,वैमनस्य,दहशत,अंधेरगर्दी की फसल बोने वालों



आतंक,वैमनस्य,दहशत,अंधेरगर्दी की फसल बोने वालों 
हाथ कुछ भी न आयेगा इतना समझ लो समझने वालों। 
कब्र खोद रहे हो तुम ये खुद के लिए जरा समझ लो 
शरीयत से दुनिया चलने का ख्वाब पालने वालों। 
खुद की  दलदल में सिर तक धंस चुके हो जान लो 
हरा-हरा जो सूझ रहा तुम्हें जन्मांध आँख वालों। 
ज़रा भी ग़ैरत बची हो तुम में तो अब भी संभल लो 
प्यार,मोहब्बत भरी खुदा  की दुनिया में रहने वालों।
घर के न रहोगे घाट के ये बहुत ठीक से  जान लो  
हद से ऊपर जो बहने लगा है ज़ुल्म ढहाने वालों। 
हो सके तो तुम भी जल्द सौहार्द से रहना सीख लो 
रंग-बिरंगी दुनिया नेमत है खुदा को चाहने वालों। 
ख़ुदा  की ओर जाते हैं सभी रास्ते जान लो 
"उस्ताद" कुफ्र है बहुत ये न समझने वालों। 



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