Friday, 15 July 2016

गुरु तेरे श्री पुण्यधाम (गुरु पूर्णिमा के परम मंगलकारी दिवस पर)

गुरु पूर्णिमा के परम मंगलकारी दिवस पर जो भक्त कतिपय कारणों से अपने गुरुधाम नहीं जा पा रहे हैं उनके लिए एक छोटी कविता इस आशा से की इससे उनको कुछ सांत्वना मिल सकेगी।

गुरु तेरे श्री पुण्यधाम जो मैं चाह के आ न सका 
होगी यही तेरी रजा जो मैं चाह के आ न सका। 
वैसे तू तो बसता कहाँ नहीं है मुझे बता जरा 
मैं ही हूँ  पगला जो ढूंढ रहा एक धाम जरा। 
संभव है मेरी छुद्र सोच को मिटाना चाह रहा 
 अब मिलने को मुझसे तू ही लगता आ रहा। 
वैसे तो तेरा घट-घट,जीव-जीव में वास हुआ 
जो भी देखूं,जहाँ भी जाऊं तेरा ही भाव हुआ। 
श्री चरनन बस प्रीत रहे बस ऐसी तू कृपा चला 
भेद - बुद्धि रहे न मुझमें ऐसी अब तू हवा चला। 
मेरी डोरी तेरे हाथ,ले तू  डोरी अपने हाथ सदा 
यही याचना,यही प्रार्थना करता हूँ करबद्ध सदा। 

                                                                  

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