Sunday 27 March 2016

मैं बेपरवाह,बावजूद इसके


भूल तो जाता हूँ मैं अक्सर 
जब चलता हूँ एक कदम 
पर ठिठक कर रह जाता हूँ 
 उसका दुष्परिणाम देख कर। 
तब दूसरा कदम चलने से पहले 
बस याद आ जाती तुम्हारी 
बिगड़ी सुधारने को,स्वार्थ भरी 
स्मृति में छवि,फिर है उभरती। 
और तुम भी सदा की तरह ही 
भुला मेरी कटुता,दुराचरण 
कैसे दौड़े चले आते हो तत्काल ही 
आँचल से सहला,अंगुली पकड़ 
सन्मार्ग पर ले चलने केलिए 
पर मैं बेपरवाह,बावजूद इसके 
फिर नया कदम,हाथ छुड़ा 
रखता हूँ पूरा अकड़ के 
पर फिसल जाता हूँ फिर 
काम,क्रोध,लोभ जैसे दलदलों में। 

1 comment:

  1. तरकेश जी,
    नमस्कार !
    आपका ब्लॉग (Astro-kavi Tarkesh) देखा । आपको हिंदी के एक सशक्त मंच के सृजन एवं कुशल संचालन हेतु बहुत-बहुत बधाई !!!इन्टरनेट पर अभी भी कई बेहतरीन रचनाएं अंग्रेज़ी भाषा में ही हैं, जिसके कारण आम हिंदीभाषी लोग इन महत्वपूर्ण आलेखों से जुड़े संदेशों या बातों जिनसे उनके जीवन में वास्तव में बदलाव हो सकता है, से वंचित रह जाते हैं| ऐसे हिन्दीभाषी यूजर्स के लिए ही हम आपके अमूल्य सहयोग की अपेक्षा रखते हैं ।

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    संजना पाण्डेय
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