Friday, 18 March 2016

"नलिन" कली विहँसेगी


साईं मैं तुम्हें हर रोज 
अपनी बक-बक से कहीं 
परेशान तो नहीं करता? 
 करता हूँ न!पर करूँ क्या?
दरअसल सूझता कोई नहीं 
जो अंतर्मन व्यथा को समझे। 
जब-जब,वैसे तो हर छन 
मन में उठता है उबाल 
तो घबरा कर मुझे सूझता
बस यही एक समाधान 
कि अपनी व्यथा कथा सुना कर 
करवा लूँ तुमसे उपचार 
वर्ना तो सब हंसेंगे मुझ पर 
निकलेगा न रत्ती भर परिणाम।  
हाँ!जब तुमसे कुछ बतिया लूंगा
 मन का मन-भर मल ढलका लूंगा
तब ही कुछ बात बनेगी 
उर में मेरे "नलिन" कली विहँसेगी।   

No comments:

Post a Comment