Wednesday, 16 March 2016

गजल-94 नूर निगाहों से जो छलकता है तेरी

 

नूर निगाहों से जब-जब है छलकता तेरी। 
खुश्क मेरे लबों को तर वो करता तेरी।। 

काश कुछ सजाओं को मेरी तू धो डालता कभी।
इनायते-करम जिनका चर्चा बहुत रहता तेरी।। 

आरजू दिल की पूरी करता काश तू कभी।
जहाँ में सब तरफ तो यूं अमन दिखता तेरी।।
 
चाहत बस इतनी रखता हूं बड़ी शिद्दत से। 
ता उम्र अंगुली पकड़ कर मैं चलता तेरी।।

इन्द्रधनुषी सपना है ये आंखों में बसता।
 नायाब,प्यारी छवि कभी मैं देखता तेरी।।

दुनियावी माल असवाब भला क्यों कोई पूछे।  
दौलत,शौहरत से बढ़के नज़र जब बसता तेरी।।

"उस्ताद"हो जाती मेरी भी ये सारी साधना सफल।
सृष्टि के पोर-पोर बजती बांसुरी जो सुनता तेरी।। 

@नलिन #उस्ताद

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