इश्क करना तय मानिए जिसे एकबार आ गया।
इस जगत का उसको समझ में सार आ गया।।
पाक दामन रहा वो तो गुनाह करके भी देखिए।
करना जिसे अपनी गलतियाँ स्वीकार आ गया।।
हर एक बात पर सहमति जताना आपका जरूरी नहीं।
जीत लेता है वो भी दिल जिसे करना इन्कार आ गया।।
अपने लिए तो यहाँ जीते रहे हैं सभी ता-उम्र देखिए।
सुकूं मिला उसे जिसके जज़्बात में उपकार आ गया।।
धन-दौलत,माल-असबाब कुछ दिन की बस चांदनी।
रईस तो है वही जिसे बांटना सबको प्यार आ गया।।
चार बर्तन रहेंगे जहां भी,होगी वहीं कुछ खटरपटर भी। मुखिया वही है जिसे मिलकर,चलाना परिवार आ गया।।
रूठके बैठ जाते हैं अक्सर हम किसी न किसी से कभी।
जीतता है हारी बाजी वही जिसे करना मनुहार आ गया।।
"उस्ताद" यूँ तो मेरी निगाहें बस एक बार ही उनसे मिली।
सच कहें जिंदगी में तबसे अपनी असल करार आ गया।।
No comments:
Post a Comment