हर तरफ हो खुशियों का कारोबार तो कैसा रहे।
बहे हर तरफ बस प्यार का खुमार तो कैसा रहे।।
जुबानी जंग बार-बार करने से कहो क्या फायदा।
मुकाबला चलो हो ही जाए आरपार तो कैसा रहे।।
बहुत उठा चुके नाज ओ नखरे हम तुम्हारे जानेमन।
मोहब्बत का अब कर भी दो इजहार तो कैसा रहे।।
टकराई बेसाख्ता कश्ती आँखों की इश्क की झील में। लफ्जों की चल ही न पाए मगर पतवार तो कैसा रहे।।
इत्र लगा मुगालते में किसी को "उस्ताद" क्या डालना। महक शख्सियत ही अपनी करे इश्तिहार तो कैसा रहे।।
No comments:
Post a Comment