#manojmuntashir #Adipurush
नाचहिं नट मर्कट की नाईं
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बंदर को सदैव अपनी पूंछ (पूछ) प्रिय अत्यंत लगती है।
दरअसल यही तो उसे बना देती सदैव अतिविशिष्ट है।।
वृक्ष की शाखाओं पर उल्टे लटकने का करतब दिखा।
सहज ही भर पाती जो सबमें उत्तेजना अप्रत्याशित है।।
क्षण में अपनी फनकारी से बजवा भी लेती है तालियाँ।
चरम सुख,संतुष्टि पा मगर दिमागी संतुलन हिला देती है।।
सो उसी रौ में वो नकलची बंदर उस्तरे का इस्तेमाल कर। अपना ही थोबड़ा लहूलुहान कर दशग्रीव सा इतराता है।। बावजूद इसके वो आत्ममुग्ध हो निहारता है स्वर्ण दर्पण।।डालियाँ पकड़ चैनलों की इधर-उधर कूदता-फांदता है।। पारितोषिक समझ लोगों की कठोर प्रतिक्रिया पर हँसता। जाने-अनजाने प्रमाद में स्वयं की ही पूंछ को जलाता है।। और देर जब उसे होशो हवास आए तब तक नादानी में।
बेचारा वो अभिशप्त अपनी ही बस्ती खाक मिलाता है।।
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