Tuesday 20 June 2023

ग़ज़ल-541:- लुत्फ और है

मां के आंचल में बैठने का लुत्फ और है। 
जमीं पर बैठकर खाने का लुत्फ और है।।

छप्पन भोग का है यूँ लज्जतदार स्वाद अलहदा।
बैठ पंगत में मगर प्रसाद पाने का लुत्फ और है।।

माना वो भाव बहुत खा रहा इजहार ए मोहब्बत में। 
 धीरे-धीरे सही उसे अपना बनाने का लुत्फ और है।।

सीधी राहों में चल चूमना हर मंजिल आसान है।
जान हथेली लेकर मगर चलने का लुत्फ और है।।

गमों के तूफान में डूबना लाजिम है बड़े जहाजों का।
कश्ती वहीँ "उस्ताद" अपनी खेने का लुत्फ और है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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