सितार के आज तार छेड़ें,मृदुल हाथों से चलो अपने।
नवल वसन्त राग गाएं,अप्रतिम प्रेम के हम पाग सने।।
इंद्रधनुषी सृष्टि में आओ कुछ चटक रंग भरकर दिखाएं। चंपा,चमेली,गुलाब,पुष्प-पराग से दसों दिशा महका दें।।
हरी भरी वसुंधरा में,मृगशावकों से हम उछलते-कूदते।कजरारे नैनों की बुझा विपुल व्यास,आ उसे तृप्त करें।।
सूरज,चांद,सितारे चमचमाते,गगन से लाकर उतार नीचे।
खेलें मिलकर हम सब साथ,इन्हें अपनी कन्दुक बना के।।कन्दुक : गेंद
शांति-सद्भाव,आशा-विश्वास के गीत पुरजोर गुनगुनाते।
घर-घर प्रत्येक चौखट जाकर,सात्विक अल्पना सजाएं।।
No comments:
Post a Comment