खुद को पहेली न बनाएं तो जिन्दगी समझ आ जाएगी।
सीधी,सरल,सपाट-गंगा सी फिर वो साथ बहती जाएगी।।
जाने क्यों हर किसी को है अभिमान अपने दशशीश पर।
ऐसे तो मगर दिन-ब-दिन बात और भी बिगड़ती जाएगी।।
यूँ तो हैं रिश्ते नाते दो हाथ से बजने वाली ताली के जैसे।
मिला जो नहीं साथ अगर तो लय-ताल बिखरती जाएगी।।
दो कदम हम-तुम चलें लक्ष्य पर यदि आस और विश्वास से।
मंज़िल हो सातवें आकाश पर तो वो भी निकट आ जाएगी।।
संकल्प,उत्साह से रचे-बसे नव परिधान पहन यदि हम बढ़ें।
अवश्य मूर्छित पड़ी किस्मत को भी संजीवनी मिल जाएगी।।
नलिन@तारकेश
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