खुशी मिलती है तुम्हें तो यूँ ही हमें रुलाते रहो।
झूठमूठ ही बस तुम कभी आकर बहलाते रहो।।
धुआं-धुआं सी हो ही गई है जब हमारी ये जिंदगी।
नजदीक हमारे तुम भी आकर बीड़ी सुलगाते रहो।।
जुल्फों की छांव मयस्सर होगी कभी जिंदगी में।
चलो बस यही सोचकर खुद को बरगलाते रहो।।
गम का तो है जिंदगी संग चोली दामन का रिश्ता।
फिर भला क्यों हर घड़ी बेवजह चिड़चिड़ाते रहो।।
हरहाल रहना जो चाहो मस्त फकीरी के रंग में "उस्ताद"।
लिबास अपने,ख्वाहिशों की जेब बगैर ही,सिलवाते रहो।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
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