देह चंदन सी बन के महकने लगी।
सांसे जब तेरी मुझको छूने लगीं।।
निगाहों ने दरिया ए हुस्न को देखा तो।
साहिल में खड़े-खड़े ही वो डूबने लगीं।।
माशाल्लाह क्या नूर टपकता है चेहरे से तेरे।
देख दुनिया ये सारी ख़ैर-म़क्दम* करने लगी।।*स्वागत
गुलों को शाख से तोड़ने की देखकर साजिश।
किसी की चाहत अपने भीतर सिसकने लगी।।
थी महज दो बूंद शराब प्याले में बाकी हमारे।
देखा तुझे तो वो भी इतराती छलछलाने लगी।।
लफ्जों की भी तो है कोई इंतहा आंखिर।
कलम "उस्ताद" की लो आज थमने लगी।।
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