याचकों की पंक्ति में खड़े हुए,हम तो अंतिम छोर हैं।
होगी कृपा हम पर राम की,बस तलाशते वो भोर हैं।।
राम ही जो हों आराध्य,फिर कहाँ जगत रहे कोई वाम है।
यूँ काम,क्रोधादि न जाने कितने,उर निवास करते चोर हैं।।
निर्गुण,निराकार रूप जिनका,जग में दिखता प्रभाव है।
वो भक्तवत्सल,बस एक आर्त पुकार,झांकते हर पोर हैं।।
शरणागति ले लें यदि,भाव से एक बार भी,यदि उनकी।
बन चट्टान अडिग,हर संताप में,वो खड़े हमारी ओर हैं।।
आनंद,परमानंद में सदा ही हम,नलिन से खिलखिलायेंगे। देखो यदि खुले मन से,जो सौंप सकें उन्हें,अपनी डोर हैं।।
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