साईं कृपा का सच्चा विशिष्ट अनुभव एक भक्त के साथ (काव्य रूप में )
मेरे एक आत्मीय को हुए इस लंबे अनुभव को संक्षिप्त में काव्य रूप में मैंने बस लिखा है।एक विशेष बात उसके साथ ये भी है की वो ध्यान करता तो साई का है पर उसे दर्शन यदा -कदा महाराज (नींबकरोली जी) का होता
है।
सूर्योदय से बहुत सबेरे उठा आज में जब
तन-मन,खिला-खिला लग रहा था तब।
हलकी-हलकी सी देह थी मेरी सहज-सरल
अधरों पर थी छायी मीठी मुस्कान तरल।
कराग्रे वसते लक्ष्मी,कर मध्ये सरस्वती
मंत्रोच्चारण संग हाथ की छवि फिर देखी।
छमा मांगते विनत भाव धरती माँ से
पाँव धरे नीचे तब मैंने अपने पलंग से।
तो लगता था जैसे एक नशे में हूँ
भला कहाँ मैं अपने होश में हूँ।
आँखों में छाया है,एक सुरूर सा लगता
सपना यह जगत है सारा,ऐसा था लगता।
जोगिया,भगवा,या कि केसरिया,काषाय रंग
जैसे धीरे-धीरे चढ़ता जा रहा मेरे अंग-अंग।
गोशल में जा जब मैंने फुहार-स्नान लिया
जोगिया रंग मनो पोर-पोर है पोत लिया।
सावन के अंधे को जैसे सब हरा ही दिखता
मुझको दिखता था बस गेरू ही लिपा-पुता ।
बार-बार काटी चिंगोटी मैंने खुद को
स्वप्न मिटा,हकीकत में लाऊ खुद को।
कहाँ दूर पर,दिखता था बस वही एक रंग
वो रंग जो बस गया था मेरे हर अंग-अंग।
घर से बाहर जाना था,जहाँ आज मुझे
रंग सुरूर ले गया,ठेलते कहीं और मुझे।
कहाँ था आज मैं जरा भी,खुद के वश में
पहुँच गया था चलते-चलते,अन्य जगह में।
इस जगह तो सब जैसे मेरे ही रंग रंग था
कूचा-कूचा बिखरा हुआ बस रंग गेरुवा था।
जैसे-तैसे देर रात फिर खा,पी घर आया
मगर रंग गेरुआ आँखों से कहाँ उतरने पाया।
पलंग पर जाकर लेट गया फिर चुपचाप सोचते
क्या हुआ अजब मुझे आज बस यही सोचते।
तभी दिखी श्री साईसतचरित खुली मेरे सिरहाने में
नासिक के मूले शास्त्री की घटना वर्णित थी जिसमें।
वस्त्र को रंगने गेरू लाना उसमें साई ने था फरमाया
कल रात यही पढ़ते-पढ़ते जाने कब था मैं सोया।
तो बात ये थी जो अब मेरी समझ में आयी
साई ने कृपा-दृष्टि से दुनिया मेरी रंगवायी।
अपने ही रंग में साई रंग दे मेरी काया भगवा
यही प्रार्थना अन्तरमन की सुनली आज देवा।
क्या कहूँ,कैसे कहूँ मेरे तो हैं लब सिल गए
अभिभूत हूँ बस रोम-रोम श्रद्धा से खिल गए।