ये माना कि सारी कायनात कतरा-कतरा तेरा ही रूप है।
जहाँ बैठ गया साकार रूप वहां की बात पर कुछ और है।।
तेरे रहमो-करम से भला कौन यहाँ महफूज़ नहीं है।
पिला दी दो बूँद आँखों से जिसे उसकी मस्ती कुछ और है।।
दुनिया बनाने वाले रंग कितने बेहिसाब तूने इसमें भरे हैं
रंग दे अगर तू अपने ही रंग में तो वो रंग कुछ और है।।
तुझसे मिलकर बात करने को जाने कितने सपने संजोये हैं।
दिल में रहकर मगर पर्दादारी की आदत तेरी कुछ और है।।
तेरी एक झलक,पद्चाप के लिए धड़कता दिल मेरा है।
"उस्ताद"सुना है सबसे जुदा,रसीला तेरा रूप कुछ और है।।
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