तेरी न्यारी अलकावलि में उलझ उलझ कर रह जाये मन ।
ओ मेरे नटखट प्यारे तू तो सदा सदा सबका है मनमोहन।
जाने कैसी कैसी लीला करता समझ न पाए मन ।
कभी पुचकारे तो फिर छन में विचलित करता मन।
निष्ठुर छैल छबीले, सुन ले मेरी, तेरी तुझको कसम।
कब तक दांव पेंच दिखाए अपने, मुझको मेरे सनम।
गली गली में डोला जब जब मिला न तेरा संग।
थक कर जा बैठा तो तूने, लगा लिया हैं अंग।
नील 'नलिन' सी आभा तेरी, देख देख हूँ दंग।
कभी कभी क्यों दिखलाता, हर पल दिखला ये रंग।
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