वेद,पुराण,उपनिषद जैसे सब ग्रंथों का सार।
शिव-मानस सदा रहा है,इनका शुभ आगार।।
जगद्गुरु ने उसी तत्व का,लेकर फिर आधार।
रचा राम का निर्मल विस्तृत चरित अपार।।
शिवशंकर के वरद हस्त का पाकर आशीर्वाद।
किया श्रवण "तुलसी" ने उर में रामकथा संवाद।।
भाव समाधि में किया फिर,झूम-झूम कर गान।
रामचरितमानस से उपजा,जन-जन का कल्यान।।
मंत्रबद्ध है रचना सारी,सबका है ऐसा विश्वास।
पढना,सुनना भरता अंतरमन में बड़ी मिठास।।
राम नाम के भक्त अनूठे,संत सरल तुम जग विख्यात।
भक्ति देकर सिय-राम की "नलिनदास" को करो सनात।।
No comments:
Post a Comment