कबहुं नयन मम सीतल ताता
होइहहिं निरखि स्याम मृदुगाता। सुंदरकांड १ ३/६
श्याम सलोनी रूप माधुरी छटा तिहारी
आँखें तरस रहीं देखने को छवि तिहारी।
मैं तो घिरी काम,क्रोध दानवों से भारी
अब तो ले लो सुध अविलम्ब खरारी।
तेरी विरदगाथा सदा भक्त हितकारी
मेरी अरज में भला क्यों देर भारी।
शंख,चक्र.गदा,पद्म चार भुजाधारी
विनती सुनो "नलिन"नैन बलिहारी।
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