सहारा इंडिया परिवार के हमारे एक कार्यालय सहयोगी मनोज श्रीवास्तव "मौन" के असमय काल कवलित होने पर ह्रदय छुब्ध है। सादर श्रद्धा सुमन ...... "मौन"
"मनोज" अंततः हो गया "मौन" है
याने काम,इच्छा से परे "मौन"है।
तो अब शेष रहा भला क्या है ?
परमसत्ता लीन हुआ जब "मौन" है।
दरअसल हर शब्द तो भोथरा है
झूठ,मक्कारी के रस से भरा है।
शुचितापूर्ण तो एक मात्र "मौन" है
मायावी पैंतरों से मुक्त तो "मौन" है।
सहारा कौन किसका कब तक रहा है?
जगत-व्यापार तो निष्ठुर बड़ा "मौन" है।
समय-असमय उसे कहाँ होश है
वो तो अपनी मस्ती में "मौन" है।
इसी कालचक्र के आगे पंक्तिबद्ध हैं
हम,तुम सभी होने को "मौन" हैं।
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