नवरात्रि की इस शुभ बेला पर झूम उठी ये सृष्टि सारी
माँ शारदा,लक्ष्मी,काली की गूँज उठी देखो किलकारी।
सत,रज,तम और वात,पित्त,कफ के सन्तुलन की है तैयारी
नव-दिन में तन-मन साधन की,साधक में होती है बेकरारी।
नवदुर्गा के नवरूप मनोहर,नवधा भक्ति की है बलिहारी
अंबे-अंबे पार लगा इस भवसागर से,ये भाव बहे संचारी।
तंत्र-मन्त्र,यज्ञ-दान और कहीं जगराते की होती है तैयारी
माँ तो है करुणा की देवी,एक पुकार सबकी लाज संवारी।
श्री,समृद्धि,शक्ति,शांति की ,घर-घर बहे बयार हितकारी
निश्छल नतमस्तक हों देवी के आगे तो मिटें कामना सारी।
No comments:
Post a Comment