माँ तेरे जगराते का आडम्बर करते कुछ लोग हैं
महंगे-महंगे झाड़-फानूसों से करते सजावट भव्य हैं।
हलुवा-पूरी,खीर-मलाई चट कर जाते सब भोग हैं
सच्चे भक्तों को लेकिन तेरे,रूखा-सूखा देते शेष हैं।
वी.वी.आई.पी,वी.आई.पी सुविधा करते खूब प्रबंध हैं
लेकिन निर्धन के भीतर आने पर करते बड़ा ज़लील हैं।
माएं तो सबकी बस माँ होती हैं,करती कहाँ विभेद हैं
लेकिन तेरी आड़ में भीतर-भीतर करते छल-प्रपंच हैं।
महिला महिमा मंडन का बात-बात पर करते रहते शोर हैं
माँ-बहनों संग व्यवहार मगर करते दुःशाशन का रोल हैं।
दुर्भाग्य बड़ा कि अब कुछ माँ-बहने भी करती बड़ा किलोल हैं
इज़्ज़त से अपनी खुद ही खिलवाड़ करती रहती हर रोज़ हैं।
जगदम्बे रौद्र रूप की तेरे अब हम सबको दरकार हैं
भेद,अज्ञान मिटा दे इनका,नित करते यही गुहार हैं।
स्नेह,प्यार,दया और करुणा,मानव की असली पहचान हैं
सरल,सहज जीवन जीने में सबके ही कल्याण निहित हैं।
No comments:
Post a Comment