Tuesday 20 September 2016

प्यार नहीं एकमात्र बने अब तो "शठे-शाठ्यम" मन्त्र हमारा।।



अमर शहीदों को श्रद्धांजलि देने उमड़ा सारा देश हमारा।
लेकिन सोचो इतने से क्या इतिश्री होगा कर्तव्य हमारा।।
सैनिक ने तो जान गवां कर अपनी देश बचाया सारा। 
ऋण उतार सकेगा उनका पर क्या मात्र विलाप हमारा।।
मारो,काटो,फूकों सबको अब तो हो बस कर्म हमारा।
शत्रु सारे सब थर्राएं गूंजे ऐसा अब जयगीत हमारा।।
फहराएं हम शत्रु भूमि पर बढ़कर विश्व विजयी तिरंगा प्यारा। 
आने वाली नसलें उनकी सोचें जिससे कभी न सौबार दोबारा।।
लेकिन इससे भी पहले भीतर बैठा जितना है गद्दार हमारा। 
ढूंढ,छांट,पकड़-पकड़ कर दो इन सबको जवाब करारा।।
बहुत हो चुका अब नहीं सहेंगे सब्र का बांध टूट चुका  हमारा। 
प्यार नहीं एकमात्र बने अब तो "शठे-शाठ्यम" मन्त्र हमारा।।

No comments:

Post a Comment