शिवांश हैं हम जन सभी
उस दिव्य परम पुरुष के।
अतः हम क्यों सोचें कभी
योग्य नहीं परम सत्य के।
छिति,जल,पावक,गगन,समीर
पंचभूत रचित हुई हमारी रचना।
जो सब उसकी ही तूलिका से
है विलक्षण रची एक योजना।
आत्म तत्व तो उसी का है हममें
चेतना का तेजोमय आलोक भरता।
वही जब समाहित होता उसमें
तो जगत है उसको मृत्यु कहता।
पर वो तो है दिव्य मिलन
आत्मा और परमात्मा का।
अतिथि बन,कुछ देर घूम-टहल
वापस अपने मूल निवास जाने का।
अतः इस यात्रा को क्यों हम ढोयें भला
परमोत्सव की तरह क्यों न चलते रहें।
जो भी है उसकी योजना हमारे प्रति
आओ उस सोच को बस पूरा करतें रहें।
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