Sunday 6 April 2014

मैं सूर्य हूँ 

मैं सूर्य हूँ-"तारकेश  "
नलिन नाल से उपजा
 देदीप्यमान, प्रचंड ऊर्जा से भरपूर
मैं ही तो हूँ विश्व -विधाता
विश्व सृजक और पालनहारा
जगतात्मा, जगतचक्षु, विश्वेश
साक्षी बन सब देख रहा
अविरल, अबाध, निर्निमेष।

मैं सूर्य हूँ -"तारकेश "
सम्पूर्ण कालचक्र की वल्गाएँ
हैं मेरे ही हाथों के आधीन
सप्तलोक की सप्तपदी
सप्तवर्ण के अश्वों पर करता पूरी
मौन सप्तस्वरों की मेरी वाणी
शंखलता का बने किलोल
सिँह स्कन्धों पर शोभित रोहित चाप
सृष्टि स्पंदन देते नूपुर चढ़े बाण।

मैं सूर्य हूँ -"तारकेश "
हंस विवेकी, नहीं अभिमानी
प्राणशक्ति संवाहक, अक्षय प्रकाश स्रोत
अनवरत गतिमान -भूत, भविष्य, वर्त्तमान
"रमा-मुकुन्द" मेरा सदन
गहन, गम्भीर क्षीरोदधि धाम
नहीं करता पर मैं कभी विश्राम।

मैं सूयॆ हूॅ-"तारकेश"
परम तत्व श्रीराम से साक्षात्कार को
दशरथ कोअपने हाॅकता,साधता
इला,पिंगला,सुष्मुना विचरता त्रिनाड़ी लोक
होता तब मिलन अपने "राम" से
इस तरह प्रभामयी,विशिष्ट,तेजोमयी
उसी प्रकाश का कुछ अंश बिखेर 
करता अंकुरित जीवन सकल सृष्टि उदर में।

मैं सूर्य हूँ -"तारकेश "
अस्त कहीं कभी ना होता
हाँ ये जो आती है जीवन संध्या
दरअसल है वो भी मेरी लीला
 मानव भ्रम दृष्टि इसे कहे  मेरा विश्राम
लेकिन प्राणी यह सत्य नहीं है
कहीं किसी एक अलग दिशा में
करता हूँ मैं नवीन प्रातः का अनुसन्धान।



1 comment:

  1. This poem is dedicated to Time, so Sun is here to represent.when in evening of our life we feel dishearten poem says that dear soul, (sun represent soul&eyes also-surya aatma jagatchakshu viz; eyewitness)You are sun so if not shining in the east, dont bother you are shining in the west as you are kaalateet (above the Time).so cheer up.

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