मैं चला ही कब था
पथ पर सरल
जो पथभ्रष्ट हो जाऊंगा।
मैं तो रहा हूँ
सदा से ही भ्रष्ट
शायद कभी कृपा हो उसकी
तो "पथ"पर आ जाऊंगा।
जैसे लहरों पर बह गया
मौज में आकर कहीं
"मन है मेरा "सदा से यूँ ही।
अब तक बस उछलते-कूदते
लहरों के साथ फिसलते
यूँ ही बहता रहा है
सदा मेरा जीवन चक्र।
पर शायद कभी
कठोर चट्टानों पर
सिर पटक-पटक कर
रास्ता मिल जाये सपाट।
जो करे मुझे सदा को
निर्मल,निष्पाप
निकल कर बहा दे
मेरे अंतर बसता
कलुष विष अपार।
तो लहरें ले जायेंगीअवश्य
मुझे वहाँ उस किनारे तक
जहाँ मिलेंगे श्री चरण राम
करने मेरा बेड़ा पार।
पथ पर सरल
जो पथभ्रष्ट हो जाऊंगा।
मैं तो रहा हूँ
सदा से ही भ्रष्ट
शायद कभी कृपा हो उसकी
तो "पथ"पर आ जाऊंगा।
जैसे लहरों पर बह गया
मौज में आकर कहीं
"मन है मेरा "सदा से यूँ ही।
अब तक बस उछलते-कूदते
लहरों के साथ फिसलते
यूँ ही बहता रहा है
सदा मेरा जीवन चक्र।
पर शायद कभी
कठोर चट्टानों पर
सिर पटक-पटक कर
रास्ता मिल जाये सपाट।
जो करे मुझे सदा को
निर्मल,निष्पाप
निकल कर बहा दे
मेरे अंतर बसता
कलुष विष अपार।
तो लहरें ले जायेंगीअवश्य
मुझे वहाँ उस किनारे तक
जहाँ मिलेंगे श्री चरण राम
करने मेरा बेड़ा पार।
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