घटा ज़ुल्फ़ की जब छाने लगी।
दिले-धड़कन अपनी बढ़ाने लगी।।
सोचा था पियेंगे आज जम के मय
करीब उनके बेहोशी छाने लगीं।।
रात बीती किस तरह बतायें हम।
सुबह फिर यादे-दिल सताने लगी।।
Add caption |
पिलायी तो कसम से थोड़ी ही मगर।
खुश्क लबों को वो ही भाने लगी।।
रंगते-मय किस शोखी में ढलीं थीं।
बात आसां कंहाँ समझ जो आने लगी।।
मय पी टूटीं कसम आज "उस्ताद" की।
सुर्खी में ताज़ा ख़बर बिकाने लगीं।।
No comments:
Post a Comment