दहलीज लांध बहुत दूर चला आया है घर की।
याद तो बहुत आएगी उसे अपने शहर की।।
कुछ कमाने की चाह में बहुत कुछ खो गया।
समझ आएगी कहाँ पर चाल मुकद्दर की।।
हर रात तो करवट बदलने में है गुज़र जाती।
ख्वाब को भी चाहिए सुकून-ए-नीँद एक पहर की।।
जो भी हो जैसी भी रहे मुबारक है जिंदगी।
घूरे सी एक दिन बदलेगी तो जरूर पैकर* की।।*जिस्म
हथेली में संजोनी है जो पारे सी जिंदगी।
"उस्ताद "से सीख लो फ़न-ए-बारीकी बराबर की।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment