सगुण हो या निर्गुण
स्थूल हो या सूक्ष्म
ससीम हो या अनंत
हर जड़ या जीव
चर या अचर
चेतन या अचेतन
सृष्टि में हमारी
या उससे भी परे
सबमें है तू विराजित
इसलिए जगत या उससे परे
कहाँ है कुछ विभाजित
ये मेरा मैं भी
जिसे मैं अपना मानता हूँ
ज़रा भी नहीं है मेरा
तो ढूँढना है किसे
भूलाना है किसे
चाहना है किसे
ठुकराना है किसे
सब रूप में है तू
सब रंग में है तू
या तुझसे ही हैं
सब रूप, सब रंग
तो क्यों रहे
भला कोई भी
गिला या कि शिकवा
तू अगर है किसी का
या की निर्विकार भोला
तो भी तो है
तू मेरा
जितना उसका
उतना मेरा
हर रूप में मेरा
हर रंग में मेरा
मेरे साईं तू मेरा।
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