अरे यह क्या ?
मानव महान की तुलना
अदने सर्प - जीव से।
सांप - डरपोक, दब्बू
छुप कर चलता है
उस पर भी कोई छेड़े
तो कभी भूल से
शायद काटता है।
पर मानव-बुद्धिजीवी
बेबात,बिना छेड़ने पर भी
काट लेता है।
सुनते हैं - सांप का काटा
पानी नहीं मांगता
लेकिन आदमी का काटा
मर के भी मर नही पाता।
शायद मेरे ख्याल से
सर्प - समुदाय
कुछ तेज़ सांपों को
जो मुखिया या प्रधान हों
विभूषित करते होंगे
पदवी से आदमी की।
केंचुली - हाँ यह बात
मिलती अवश्य है
दोनों ही बान्धवों में
कि सांप भी
और मानव भी
केंचुली बदलते हैं
चाहे गति पुनः
बदलने की केंचुली
मानव की ही अधिक हो।
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