मिजाज़े दौर अब कितना बेईमान हो गया है।
हर आदमी का चेहरा लहूलुहान हो गया है।।
ख्वाबों में दिखती बस चीख,दरिंदगी है।
हकीकत का तो जैसे चलान हो गया है।।
खुदा का यहां एक अरसा हुआ देखो क़त्ल हुए।
इबादत का अनोखा ये ईमान हो गया है।।
इल्म,हया,नेकी को कौन भला अब पूछेगा।
कालिख में पुता चेहरा पहचान हो गया है।।
बेशर्मी का अजब ऐसा जुनून दिख रहा।
आदमी बड़ा बबॆर,हैवान हो गया है।।
जब से खुदा ने कबूल ली इबादत उसकी।
"उस्ताद'' को बड़ा इत्मीनान हो गया है।।
"उस्ताद'' को बड़ा इत्मीनान हो गया है।।
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