बेशर्मी की भी हर हद, अब हो गयी है पार
यूँ जब कुम्भकरण सी,सोयी रही सरकार।
कुर्सी मोह की महिमा, कैसें करें हम बखान
गांधारी सी पट्टी बांधे, देखती रही सरकार।
वर्षा, धूप, उमस से लड़ता, जन का लोकपाल
सत्ता मद में लेकिन, सदा मौन रहा सरदार।
जनता की सेवा का कहाँ, जरा इन्हे रत्ती भर विचार
अपनी दस पीढ़ी की खातिर, स्विस में रखा माल।
ये नेता तो पक्के, चोर लुटेरों के बाप
इनके रहते भारत का कैसे हो कल्याण।
लोकतंत्र की द्रौपदि, चीर हरे सरकार
कृष्ण सरीखे मोदी, आये बचाने लाज।
×××××××××××
यूँ जब कुम्भकरण सी,सोयी रही सरकार।
कुर्सी मोह की महिमा, कैसें करें हम बखान
गांधारी सी पट्टी बांधे, देखती रही सरकार।
वर्षा, धूप, उमस से लड़ता, जन का लोकपाल
सत्ता मद में लेकिन, सदा मौन रहा सरदार।
जनता की सेवा का कहाँ, जरा इन्हे रत्ती भर विचार
अपनी दस पीढ़ी की खातिर, स्विस में रखा माल।
ये नेता तो पक्के, चोर लुटेरों के बाप
इनके रहते भारत का कैसे हो कल्याण।
लोकतंत्र की द्रौपदि, चीर हरे सरकार
कृष्ण सरीखे मोदी, आये बचाने लाज।
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