Tuesday, 21 November 2023

615: ग़ज़ल:कुछ नादानियां

कुछ नादानियां तो हमारी जग जाहिर हो चुकीं।
मगर बहुत अभी भी हमने छुपाके हैं रखी हुई।।

यार वैसे सच कहूं तो तुम यकीन कर भी लेना। 
नासमझी कुछ ऐसी हैं जो हमसे भी छुपी रहीं।।

तेरी समझदारी पर है शक-ओ-शुब्हा तो नहीं हमें।
तभी उम्मीद है ये राजे-बात तेरे लिए कतई नहीं।।

दिल खोलकर रखना अच्छा है ताउम्र दोस्ती को।
ये अलग बात है आज कद्र नहीं ऐसे जज़्बात की।।

सफ़र में चलते-चलते अकेले,थक गए हैं हम बुरी तरह।
"उस्ताद" चलो देखें मगर तकदीर में क्या कुछ है लिखी।।

नलिन तारकेश @उस्ताद

Monday, 20 November 2023

614:ग़ज़ल: बेहिसाब हैं चाहतें

जरूरतॆं तो थोड़ी मगर कितनी बेहिसाब हैॆं चाहतें।
दॊनॊं हथेली फैलाकर हम तो हर वक्त बस मांगते।।

वक्त का जब तक दांव चले तब तलक सब ठीक है। 
वर्ना तो खुदा जाने कब वो अशॆ से फर्श पे पटक दे।।

एक महज़ ख़्वाब ही तो है हमारी ये नायाब जिंदगी।
किसी को खुशगवार तो किसी को वो हलकान करे।।

जो मगरूर हो बटोरते रहे बस ऐशोआराम अपने लिए। 
अनगिनत ऐसे शख्स दम तोड़ते अक्सर बेसहारा दिखे।।

ये जिंदगी कसम से कोरी लफ़्फाज़ी के सिवा कुछ है नहीं। 
जाने क्यों भला "उस्ताद" मोहब्बत लोग इससे करते चले।।

नलिन तारकेश @उस्ताद

Sunday, 12 November 2023

613:ग़ज़ल :एक अलग धुन,अलग मस्ती

एक अलग धुन,अलग मस्ती में हम चलते रहे।
भीतर जलाकर चिराग रोज खिलखिलाते रहे।। 

बनावटी उजाले तो छोड़कर चले ही जाते हैं।  
मिला हमें उसका नूर तो परचम लहराते रहे।।

भरपूर दौलत में सुकूं को बस लोगों ने ये किया।
औंधे मुंह मगरमच्छ जैसे चुपचाप बालू पड़े रहे।।

बगैर सोचे समझे चलने की फितरत रही है हमारी। खामियाज़ा भुगता तो कभी तुक्का मार बढ़ते रहे।।

डॉलर,यूरो,रूबल सब हैं ताकत के गुरुर में अपनी।  "उस्ताद" तो खाली जेब भी मगर झूमकर गाते रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 11 November 2023

ग़ज़ल: जहां भी रहे

जहाँ भी रहे वहीं के रंग में ढल गए।
आसां जिन्दगी यूँ बसर करते चले।।

दिन में तो मुठ्ठी भर लोग दिखे यहाँ। 
शाम पर बर्रों से मधुशाला पर जुटे।।

उम्र का अहसास कोई तो रखता नहीं।
झुर्री भरे चेहरों में भी मुस्कुराहट दिखे।।

शहर का जादू तो सर चढ़कर बोल रहा।
पलक भी हमारी झपकने से इंकार करे।।

बाहर निकलते ही कड़ी धूप मिल रही।
"उस्ताद" मस्ती में मगर हम डोलते रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Friday, 10 November 2023

612: ग़ज़ल :जिन्दगी मेहरबान तो शुक्रिया रहे।

जिन्दगी मेहरबान जब हम पर तो शुक्रिया रहे।
लम्हा-लम्हा उसकी ही बदौलत लुत्फ उठा रहे।।

रंगीन दिन तो रात एक कदम और भी आगे है।
हम देख यहाँ की रौनक हैरत में पड़ते जा रहे।।

बरसात कभी भी खुलकर हो जा रही है यहाँ।
तेज धूप ऑखे दिखाए उसे परवाह कहाँ रहे।।

मेट्रो,टैक्सी बैठ हर गली चौराहे नाप रहे हम।
तेरी चौखट की चाहत में हम कदम बढ़ा रहे।।

समन्दर तो खारापन पीता रहा है सदा के लिए।
हम ही यार हर गाम हलकान हो तौबा मचा रहे।।

रेत पर समन्दर किनारे लिखे नाम से क्या फायदा।
दिन-रात बेखौफ मगर हम "उस्ताद" लिखवा रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 5 November 2023

ग़ज़ल:611:in Malaysia 3

कभी भरा आकाश को बांहों में तो कभी फर्श पर लेटे।
जिन्दगी ने भी क्या-कुछ रंग झोली में फकीरों की भरे।। 

गुमान खुद पर करें तो कैसे करें कहो अब तुम ही भला।
हम एक सांस जब बगैर खुदा ए मेहरबानी भर न सके।।

ये तेरा मुल्क है वो मेरा जेहन में ऐसा कुछ आता नहीं।
हम सच कहें तो हर जगह खुश रहे खुदा के फजल से।।

कतरा-कतरा इबादत ही दिखती है कायनात में उसकी।
जाने कैसे-कैसे ख़्वाबों को हकीकत में वो तब्दील करे।।

"उस्ताद" हम तो उसकी कलाकारी देख जां-निसार हैं।
नायाब बढ़कर एक से एक रंग वो लाता है भला कैसे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Saturday, 4 November 2023

610: ग़ज़ल in Malaysia

रोशनी हर गली-कूचे में बिखरी हुई है ऐसे।
आसमां चांद-तारों संग उतरा जमीं हो जैसे।।

दीये की लौ जगमगा रही है हर चेहरे पर।
खुशगवार महौल की जैसे बरसात बरसे।।

रहे मेहरबान खुदा तो कहो क्या गम है।
हर तरफ गुलशन महकते हुए हैं दिखते।।

उसकी रज़ा हर हाल जब बन जाए तेरी।
नाउम्मीदी को भला कहाँ कोई भी तरसे।।

जिस भी रास्ते अब गुजरते हैं "उस्ताद" हम।
पलक-पांवडे बिछाए लोग सजदे कर रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

609:ग़ज़ल towards Singapore

दीपावली in Malaysia 

खुदा के मन की भी भला कौन जानता है।
वो तो हर घड़ी हमें कौतुक में डालता है।।

जो निकलते नहीं घर से दो कदम बाहर।
दुनिया जहां उन्हें घुमा-फिराकर लाता है।।

किसी चेहरे पर गम तो कहीं खुशी दिख रही।
बातें वही सब मगर हौसला वही दिलाता है।।

जुल्फों को खोला उसने तो हैरान थे सब।
भला सुबह-सुबह ये कौन रात सजाता है।।

जिन्दगी के शरार* कम न हों हर हाल में कभी।*जोश
"उस्ताद" ये जज़्बा तो बनाकर रखना पड़ता है।।