Tuesday, 25 January 2022

गजल 417:बेखटके मशवरे को आ जाना

ज़ाहिद* की बातें तो वही समझ सके जिसने की बंदगी कभी। 
चौखट पर उसके सजदों से दिखावटी बात नहीं बनती कभी।।
*सांसारिक प्रपंचों से दूर भागवत भक्त 

किसी की आंख में आँसू का एक कतरा भी दिख जाए तो। कहाँ सुकून से एक झपकी भी ले पाती है नेकदिली कभी।।

दिले जज्बात को अपने सीने से दबा कर न रखा कीजिए हुजूर।
बेसाख्ता लबों पर लाइए यूँ कल की किसको खबर रही कभी।।  

महफिले मयखाने में नशा वो मिलेगा नहीं जो चढ़के बोले। 
जरा नजरें मिला कर देखिए तो उनसे जनाबे आली कभी।।

मुसाफिर हो तुम उन्हीं रास्तों के जिन से गुजरे हैं "उस्ताद" हम। 
बेखटके मशवरे को आ जाना सुनाने हमें परेशानी अपनी कभी।।

@नलिनतारकेश

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