Monday, 17 January 2022

413: दुनिया ए मौज

क्या कहें,क्या ना कहें,तुझसे अक्सर यही सोचते हैं।
तू जानता है सब हाल अपने,सो नहीं कुछ कहते हैं।।

हर तरफ बस तेरी ही इनायते करम का बाजार गर्म है।
दर पर तेरे तभी तो हम,टकटकी लगाए खड़े रहते हैं।।

दर्द,तकलीफ तो बेशुमार है इस मुस्कारते दिल में।
मगर तौबा,तेरी कसम बस चुपचाप सहा करते हैं।।

बगैर रजा के तेरी कहाँ हिलता है यहाँ एक भी पत्ता।
खता मानकर कहाँ इल्जाम तुझ पर मगर मढ़ते हैं।।

जब से नजरें चार तुझसे हो गई हैं यारब सच में।
दुनिया ए मौज हम चुपचाप "उस्ताद" लेते हैं।।

@नलिनतारकेश 

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