जुल्फ की पेंज खोल लट लहरा दी उसने मेरी।
उथली सी जिंदगी क्या खूब गहरा दी उसने मेरी।।
काॅच-पत्थर,सीप-मोती,क्या कुछ बटोर रहा था मैं।
चाहतें सारी बन के तूफान बिखरा दी उसने मेरी।।
आज हूं कल नहीं ये खौफ तो हर आदमी का है।
मगर सच कहूं यह बात भी बिसरा दी उसने मेरी।।
दुनिया उसकी,नूर उसका हर तरफ जलवा फरोज दिखा।
यूं हकीकत से,रूबरू मुलाकात करा दी उसने मेरी।।
अब वो है"उस्ताद"और शागिदॆ हूॅ मैं उसका।
यह बात कायदे से जहन उतरा दी उसने मेरी।।
@नलिन #उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 13 March 2019
गजलः 115 जुल्फ की पेंच खोल
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